सनातन धर्म के चार प्रमुख पर्वों में दीपावली का प्रमुख स्थान है। इसे कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या तिथि गुरुवार की सुबह 5.32 बजेे से जो शुक्रवार को भोर 3.32 बजे तक रहेगी। इस लिहाज से दीप ज्योति पर्व दीपावली गुरुवार को मनाई जाएगी। पूजन मुहूर्त: ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार दीपावली पूजन का प्रमुख काल प्रदोष काल माना जाता है। इसमें स्थिर लग्न की प्रधानता मानी जाती है। प्रदोष काल शाम 5.19 बजे से 7.53 बजे तक है। बही-खाता पूजन के लिए शुभ मुहूर्त स्थिर लग्न वृश्चिक सुबह 7.26 से 9.43 बजे तक है। कुंभ लग्न दोपहर 1.36 से 3.07 बजे तक है। वृष लग्न शाम 6.12 से 8.08 बजे तक मिल रहा है। महानिशीथ काल की पूजा रात 12.30 से दो के बीच करना शुभद होगा। महत्व : दीपावली पर सनातन धर्मावलंबी श्री-समृद्धि कामना से विधिवत लक्ष्मी पूजन करते हैं। व्यापारी कारोबार उन्नति के लिए तो तांत्रिक मंत्र सिद्धि के लिए और जो जिस भी क्षेत्र में हो कार्य सिद्धि के निमित्त मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजन-अर्चन, वंदन, पाठ आदि करता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपावली अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है। इसीलिए इस दिन किसी भी कार्य को किया जाए तो वर्ष भर उसमें सफलता मिलती है।प्रात: स्नान दान विधान : कार्तिक अमावस्या तिथि विशेष पर प्रात: पवित्र नदी में स्नानोपरांत दानादि, मध्याह्न में पितरों के निमित्त श्राद्धादि करना चाहिए। काली पूजा : अमावस्या पर बंगीय समाज के लोग निशीथ काल में मां काली का विधिवत पूजन करते हैं। दीपावली पर सायं काल देव मंदिरों में दीपदान तो रात्रि के अंतिम प्रहर में दरिद्रा निस्तारण होगा। कथा : मान्यता है कि रावण पर विजय प्राप्त कर भगवान श्रीराम के वापस आने पर अयोध्यावासियों ने प्रसन्नता में दीपोत्सव मनाया था। ब्रह्मï पुराण अनुसार कार्तिक अमावस्या को अद्र्धरात्रि में गणेश-लक्ष्मी, इंद्र-कुबेर सद्गृहस्थों के घरों में जहां-तहां विचरण करते हैं। इसलिए अपने निवास स्थान को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध व सुशोभित कर चारों तरफ प्रकाश को आलोकित करने से दीपावली मनाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो चिरकाल तक स्थायी रूप से निवास करती हैं।विधि : दीपावली की शाम देव मंदिरों के साथ ही गृह द्वार, कूप, बावड़ी, गोशाला, इत्यादि में दीपदान करना चाहिए। रात्रि के अंतिम प्रहर में लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा का निस्तारण किया जाता है। व्यापारी वर्ग को इस रात शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए कुबेर लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। परिवार में इस रात गणेश-लक्ष्मी कुबेर जी का पंचोपचार का षोडशोपचार पूजन कर धूप दीप प्रच्जवलित कर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तम, कनकधारा, लक्ष्मी चालीसा समेत किसी भी लक्ष्मी मंत्र का जप पाठ आदि करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन धान्य सौभाग्य पुत्र-पौत्र कीर्ति लाभ, प्रभुत्व, इत्यादि का महावरदान देती हैं। कार्तिक अमावस्या तिथि विशेष पर प्रात: पवित्र नदी में स्नान कर दानादि कर मध्याह्न में पितरों के निमित्त श्राद्धादि करना चाहिए।
पूजा सामग्री : लाल वस्त्र आसन पर लक्ष्मी-गणेश, कुबेर-इंद्र की प्रतिमा या यंत्र स्थापित कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें। भगवती लक्ष्मी की प्रसन्नता व कृपा प्राप्त करने के लिए बेल की लकड़ी, बेल की पत्ती व बेल के फल से हवन करना चाहिए। इसके अलावा कमल पुष्प व कमल गïट्टा से किया गया हवन विशेष फलदायी होता है। मंत्र : ‘ओम् श्रीं श्रीयै नम:, ‘ओम् श्रीं ह्रïीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ‘श्रीं ह्रीं श्रीं, ‘ओम महालक्ष्मै नम: इन मंत्रों से पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। दीपावली पर श्रीसूक्तम का 16 बार पाठ और बेल की लकड़ी पर देशी घी से हवन लक्ष्मी कामना पूर्ण करने वाला है।
जागृति समाचार के सभी पत्रकार साथियों की तरफ से सभी को दीपवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।
(अमित खरवार)