छठ पूजा2021: आज से 4 दिनों के कठिन महापर्व छठ की शुरुआत, जानिए इस पर्व की विधि

इस बार नहाय-खाय 8 नवंबर, खरना 9 नवंबर, शाम का अर्घ्य 10 नवंबर को और सुबह का अर्घ्य 11 को है. दूसरे अर्घ्य के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत समाप्त होगा.
मुख्य रूप से यह बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल के पष्ठी को यह महापर्व मनाया जाता है, इसलिए इसे षष्ठी पूजा भी कहते हैं. बिहारियों का सबसे बड़ा पर्व, छठ माना जाता है. छठ की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे हिंदुओं के साथ ही अन्य धर्मालंबी भी मनाते हैं.

पूर्वांचल की संस्कृति बन चुके यह महापर्व छठ भारत के पूर्वांचल क्षेत्र में छठ का विशेष महत्व है. छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है. जो कि पूरे चार दिन तक चलता है. नहाय खाय से इसकी शुरुआत होती है, जो अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है.
धीरे धीरे प्रवासी भारतीयों द्वारा लोकआस्था का यह महापर्व देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में प्रचलित हो गया है. इस पर्व में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि सूर्य की उपासना की जाती है और इसे छठी मईया कहा जाता है. छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था. छठ को लेकर एक और कथा प्रचलित है. किवदंती के अनुसार जब पांडव सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया. छठ व्रत खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के लिए भी मनात माँगते है
भारत के साथ ही अमेरिका, जापाना सहित कई देशों में सूर्य की उपासना की जाती है. मध्य अमेरिका के लोग सूर्य को तोनातिहू के रूप में पूजते हैं. यहां माना जाता है कि सूर्य फसलों को खुशहाली देते हैं और इंसानों को जीवन. वहीं जापान में सूर्य को माता के रूप में पूजा जाता है. उन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड की भी देवी माना गया है. जापान के होनशू द्वीप पर इनका मंदिर है.
सूर्य की उपासना सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य कई देशों में भी होती है. लेकिन कहीं सूर्य को देवता तो कहीं देवी के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की उपासना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है. ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं. वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं. वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं. कालांतर में देशभर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई.
महापर्व छठ की महता के कारण लोग इससे जुड़ते चले गए. इस मौके पर बाहर काम कर रहे लोग भी अपने घर लौट आते हैं और पूरे परिवार के साथ इस महापर्व को मनाया जाता है. हर साल दिवाली से छठे दिन छठ पूजा का आयोजन होता है. इस साल भी छठ पूजा को लेकर लोगों का उत्साह चरम पर है.

छठ व्रत पूजा विधि .
छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं। जिनकी पूजा के लिए छठ मनाया जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। इसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी।
इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ पर्व पर गांवों में अधिक सफाई देखने को मिलती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है, दूसरे दिन खरना का कार्यक्रम होता है, तीसरे दिन भगवान सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन भक्त उदियमान सूर्य को उषा अर्घ्य देते हैं।
छठ के दिन अगर कोई व्यक्ति व्रत को करता है तो वह अत्यंत शुभ और मंगलकारी होता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही निःसंतानों को संतान प्राप्ति होती है।

छठ अनुष्ठान विधि

छठ के दिन सूर्योदय में उठना चाहिए।
व्यक्ति को अपने घर के पास एक झील, तालाब या नदी में स्नान करना चाहिए।
स्नान करने के बाद नदी के किनारे खड़े होकर सूर्योदय के समय सूर्य देवता को नमन करें और विधिवत पूजा करें।
शुद्ध घी का दीपक जलाएं और सूर्य को धुप और फूल अर्पण करें।
छठ पूजा में सात प्रकार के फूल, चावल, चंदन, तिल आदि से युक्त जल को सूर्य को अर्पण करें।
सर झुका कर प्रार्थना करते हुए ॐ घृणिं सूर्याय नमः, ॐ घृणिं सूर्य: आदित्य:, ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा, या फिर ॐ सूर्याय नमः 108 बार बोलें।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं।
गरीब लोगों को कपड़े, भोजन, अनाज आदि का दान करना चाहिए।

 

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