उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा सियासी बदलाव देखने को मिल रहा है. राजनीति में पिछले कई सालों से चाचा-भतीजे अलग-अलग दांव खेल रहे थे, लेकिन अब दोनों में गठनबंधन हो गया है.
यूपी में समाजवादी पार्टी (SP) अब अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी. दोनों ने कल एक मुलाकात के दौरान मिल कर चुनाव लड़ने के समझौते पर मुहर लगा दी. 2017 के चुनाव से पहले ही चाचा-भतीजे के बीच भारी तनाव पैदा हो गया था और शिवपाल सिंह यादव ने नई पार्टी बना ली थी.अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने आएलडी (RLD) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ( SBSP)समेत कई क्षेत्रीय पार्टियों से पहले ही चुनावी गठबंधन कर लिया है ताकि बीजेपी के खिलाफ वोटों के विभाजन को रोका जा सके. क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है.
इसके बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल के साथ एक तस्वीर ट्वीट कर लिखा कि प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई. क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है.
प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से मुलाक़ात हुई और गठबंधन की बात तय हुई।
क्षेत्रीय दलों को साथ लेने की नीति सपा को निरंतर मजबूत कर रही है और सपा और अन्य सहयोगियों को ऐतिहासिक जीत की ओर ले जा रही है। #बाइस_में_बाइसिकल pic.twitter.com/x3k5wWX09A
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 16, 2021
लेकिन पिछले महीने उन्होंने कहा था कि वह अपने चाचा का पूरा सम्मान करते हैं. इसके बाद ये संकेत मिल गए थे कि शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के साथ मिल कर वह चुनाव लड़ सकते हैं. समाजवादी पार्टी ने अब तक राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, केशव देव मौर्य के महान दल, कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल से चुनावी गठबंधन किया है. 2017 में यूपी में बीजेपी ने 312 सीटें जीती थीं जबकि समाजवाद पार्टी को सिर्फ 47 सीटों से संतोष करना पड़ा था पहले सपा को अपने और जनता के बीच की खाई को पाटना चाहिए. इसके बाद आपसी दूरी कम करे तो समझ में आए.