सुल्तानपुर से संबंध रखने वाले आनंद का सपना भले ही अधूरा रह गया। लेकिन एक सामान्य कॉलेज से पढ़कर भी उन्होंने दिन-रात मेहनत की और अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है। आज उन्हें इंजीनियर, आविष्कारक और उद्यमी के तौर पर जाना जाता है। आनंद न सिर्फ खुद आगे बढ़ रहे हैं बल्कि दूसरे छात्रों को भी आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चों का ख्वाब होता है कि आगे चलकर उनका दाखिला IIT में हो। लेकिन IIT में पढ़ने का ख्वाब बहुत ही कम छात्रों का पूरा हो पाता है। उत्तर प्रदेश के आनंद पांडेय के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उनका सपना था कि एक दिन वह IIT से इंजीनियरिंग करेंगे। लेकिन उनका यह सपना पूरा न हो सका। घर-परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह और एक-दो साल तैयारी करके फिर से परीक्षा दे पाते। इसलिए उन्होंने अमेठी के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया।
आनंद लखनऊ स्थित AKP Technovision के संस्थापक हैं, जिसके जरिये वह इंजीनियरिंग के छात्रों को अलग-अलग विषयों पर ट्रेनिंग देते हैं। वह छात्रों को प्रोजेक्ट्स तैयार करने में मदद करते हैं। साथ ही, अपने आविष्कारों को बाजार तक पहुंचा भी रहे हैं किसान परिवार से आने वाले आनंद खुद भले ही IIT न जा पाए हों लेकिन आज IIT में पढ़ने वाले कई छात्रों के लिए प्रेरणा से कम नहीं है उन्हें अलग-अलग इंजीनियरिंग संस्थानों में लेक्चर, ट्रेनिंग और सेमिनार के लिए बुलाया जाता है। उनके आविष्कारों के लिए उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है आनंद ने अपने सफर के बारे में द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पिताजी किसान हैं और माँ घर संभालती हैं। हमेशा से ही उन्होंने हमारी पढ़ाई-लिखाई के लिए बहुत मेहनत की। कई बार मेरी फीस भरने के लिए उन्हें उधार लेना पड़ा। लेकिन दिन-रात मेहनत करके मुझे हौसला देते रहे ताकि मेरी पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आए। माँ मेरे लिए सबसे बड़ी हिम्मत रहीं हैं।
आनंद बताते हैं कि उनका दाखिला एक सामान्य कॉलेज में हुआ था कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपने स्तर पर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग को भी महत्व दिया। उन्हें एक बार पुणे स्थित I Square IT के एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में पता चला, जहां ज्यादातर IIT के छात्र जाते हैं। उन्होंने ठान लिया कि वह भी ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लेंगे आनंद बताते हैं कि इस ट्रेनिंग से उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।
यदि इसे कुर्सी की तरह इस्तेमाल किया जाए तो 50 से 80 किलोग्राम का व्यक्ति आसानी से इस पर बैठ सकता है। आनंद का दावा है कि अब तक वह लगभग 1000 रेस्टोबैग की बिक्री कर चुके हैं। उनके इस बैग कम चेयर की कीमत 885 रुपये है। इसके अलावा, उन्होंने लोगों की सेहत को अच्छा रखने के लिए भी एक मशीन बनाई है। उनकी बीसीएम पॉजिटिव मशीन फ़ीट मसाज करती है और रक्त के प्रवाह को सही रखती है। इससे सभी कोशिकाएं एक्टिवेट होती हैं और इम्युनिटी बढ़ती है।
“लेकिन यह बहुत ही उपयोगी चीज है क्योंकि अक्सर बस-ट्रेन में खड़े होकर यात्रा करनी पड़ जाती है। रेलवे स्टेशन पर कई बार ट्रेन के इन्तजार में लोग घंटों खड़े रहते हैं। ऐसे में, यह बैग कम चेयर बहुत ही काम की चीज है,” उन्होंने बताया।
बनाई लड्डू बनाने वाली मशीन
आनंद बताते हैं कि लड्डू बनाने वाली मशीन का आईडिया उन्हें 2020 में लॉकडाउन के बाद आया। उन्होंने देखा कि कैसे गर्मी में दुकानदार पसीने से तर होकर लड्डू बना रहे हैं। यह न तो स्वच्छता की दृष्टि से सही है और न ही स्वास्थ्य की। तब उन्होंने सोचा कि क्यों न लड्डू बनाने वाली मशीन हो। “जरुरी नहीं कि आपने जो आईडिया सोचा है, वह पहले किसी और के दिमाग में न आया हो। मैंने जब रिसर्च किया तो पता चला की लड्डू बनाने की कई तरह की मशीन बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन साथ ही मैंने देखा कि ज्यादातर सभी मशीन क़ाफी ज्यादा बजट की हैं। तो मैंने किफायती दाम में मशीन बनाने का फैसला किया,”
इस मशीन को कहीं भी ले जाया जा सकता है और एक मिनट में इससे आप 60-70 लड्डू बना सकते हैं। इस मशीन से पूरी साफ़-सफाई और कम मेहनत में आप काम कर सकते हैं। मशीन का रख-रखाव भी बहुत ही आसान है। अब तक उन्हें अलग-अलग राज्यों से 20 मशीन के ऑर्डर मिल चुके हैं। आनंद कहते हैं कि उनके नए मॉडल के लिए लोग उनकी वेबसाइट के जरिए प्री-बुकिंग कर सकते हैं।
उनके एक और ग्राहक विनोद त्रिपाठी कहते हैं, “मैं अपने घर में उनकी बीसीएम पॉजिटिव मशीन इस्तेमाल कर रहा हूँ, जिसका काफी अच्छा फायदा हमें मिल रहा है। इसके अलावा, मेरे पड़ोस में एक मिठाई की दूकान में उनकी बनाई लड्डू की मशीन भी लगी हुई है। नियमित रूप से मेरा दूकान पर आना-जाना रहता है और वहां पर कारीगरों का कहना है कि यह मशीन भी बहुत ही अच्छा काम कर रही है।” आनंद अब तक 60 से जायदा सेमिनार और कॉन्फ्रेंस में भाग ले चुके हैं। उन्होंने 150 से ज्यादा लेक्चर भी दिए हैं। उन्हें सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात की है कि उनके पढ़ाये गए बहुत से छात्र आज अच्छी जगहों पर काम कर रहे हैं। उन्होंने कई छात्रों के आइडियाज को सपोर्ट करके एक अलग दिशा भी दी है। “मैंने एक बार पढ़ा था कि चीन, जापान और अन्य विकसित देशों बच्चों को छठी कक्षा से ही इनोवेशन पर शिक्षा दी जाती थी। उनका मार्गदर्शन किया जाता है और उनके आइडियाज को सपोर्ट मिलता है। मैं चाहता हूं कि हमारे देश में भी ऐसा हो ताकि आने वाले समय में हमारे देश के बच्चे भी नवाचार के क्षेत्र में आगे बढ़ें। इसलिए मेरी कोशिश एक ऐसा मंच तैयार करने की है, जहां मैं जमीनी स्तर पर लोगों के छोटे-बड़े इनोवेटिव आइडियाज को आगे बढ़ने में मदद कर सकूं,”