छत्तीसगढ़: बैम्बू साइकिल का आविष्कार ताकि आदिवासियों को मिले रोज़गार सोशल वर्कर ने

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके का नाम सुनते ही, हमारे दिमाग में नक्सलवाद और हिंसा की तस्वीरें बनती हैं। लेकिन यह इलाका अपनी हस्तकला के लिए भी देश भर में मशहूर है। इस इलाके में बैम्बू से ढेर सारे प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। यहां के कलाकारों के लिए 30 वर्षीय आसिफ खान ने एक अनोखी पहल की है। उन्होंने एक स्टार्टअप की शुरुआत की है, जो स्थानीय कलाकारों को अपने प्रोडक्ट्स बेचने के लिए एक मंच देता है आसिफ ने 2019 में नौकरी छोड़कर इस क्षेत्र में कदम रखा। छह साल तक सोशल सर्विस सेक्टर में काम करने के बाद उन्होंने Naturescape नाम से स्टार्टअप की शुरुआत की। फिलहाल वह चार आदिवासी परिवारों से जुड़कर काम कर रहे हैं स्थानीय कलाकारों की मदद से उन्होंने बैम्बू से एक ईको-फ्रैंडली साइकिल तैयार किया है, जिसका नाम ‘बैम्बूका’ रखा है। इस साइकिल में स्थानीय बैम्बू का इस्तेमाल किया गया है। इस सोच के पीछे उनका उदेश्य कलाकारों को रोजगार का अवसर देना था आसिफ ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमारे देश के कई इलाकों में बैम्बू से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बनाए जा रहे हैं। लेकिन अब तक बैम्बू से किसी ने साइकिल नहीं बनाई है। हमने एक छोटा सा प्रयास किया है।”


इस तरह की साइकिल बनाने का ख्याल उन्हें तब आया, जब स्थानीय जिला प्रशासन ने उन्हें और उनके साथ काम करने वाले कलाकारों को एक प्रोजेक्ट के लिए लकड़ी से साइकिल बनाने को कहा। इसके बारे में आसिफ कहते हैं, “हमने लकड़ी से साइकिल बनाना शुरू भी कर दिया था। लेकिन बस्तर की लोकल लकड़ियां इतनी भारी होती हैं कि उन्हें इसे बनाने में काफी दिक्कतें आ रही थी। इसे साइकिल की तरह फ्रेम करना बड़ा मुश्किल था। हमने लकड़ी के विकल्प के रूप में बैम्बू का उपयोग किया और हमें इसमें सफलता मिल गई।” वबस्तर में जन्मे और पले-बढ़े आसिफ हमेशा से अपने क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते थे। इसी सोच के साथ उन्होंने कम्युनिटी डेवलपमेंट विषय में मास्टर्स किया था। पढ़ाई के बाद वह अगल-अलग NGO में काम भी कर रहे थे। वह कहते हैं, “अपने काम के दौरान ही मैंने महसूस किया कि हम आर्ट और क्राफ्ट के मामले में काफी समृद्ध हैं। पिछड़ा इलाका होने के बावजूद कई कलाकारों की क्षमता विश्वस्तरीय है। बांस का प्रयोग तो हम सदियों से करते आ रहे हैं। बस इसे बाजार तक पहुंचाने की जरूरत है जब वह साइकिल बनाने का काम कर रहे थे, तब उन्होंने अफ्रीका के घाना प्रदेश की जनजातियों की बनाई साइकिल देखी। ये लोग बांस से साइकिल बनाकर अमेरिका में बेच रहे हैं। जिससे उन्हें अच्छा रोजगार भी मिल रहा है। इस विचार को दिमाग में रखकर आसिफ ने आठ महीने की मेहनत के बाद बैम्बू साइकिल बनाई वह कहते हैं, “चूंकि मेरी पढ़ाई और काम का क्षेत्र दोनों ही बिल्कुल अलग था। जब हमने साइकिल बनाने की योजना बनाई तो बांस से फ्रेम बनाने में मुझे और कारीगरों को काफी तकनीकी दिक्कतें आई। उस समय हमने बंबूची( Bamboochi) नामक मुंबई की एक एजेंसी को अपनी साइकिल का डिज़ाइन भेजा और उन्होंने हमारी मदद भी की थी,  जिससे हमारा काम आसान हो गया आसिफ का कहना है कि देश में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ने पर बैम्बू से बनते छोटे-छोटे कई प्रोडक्ट्स अब बनने बंद हो गए हैं। इससे यहां के लोगों का रोजगार भी प्रभावित हुआ है। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि बांस से बनी इस साइकिल के जरिए एक बार फिर से बस्तर के कारीगरों को काम मिलने लगेगा फ़िलहाल उन्होंने दो बैम्बू साइकिल बनाई हैं। जिसे वह रायपुर और दिल्ली में आयोजित प्रदर्शनियों में प्रदर्शित भी कर चुके हैं। वहीं उन्होंने कहा कि उनके पास अभी आठ कारीगर मौजूद हैं, जो बैम्बू साइकिल बना रहे हैं।
वहीं कीमत की बात करें तो फ़िलहाल यह ग्राहकों को 35000 रुपये में उपलब्ध हो रही है। आसिफ ने बताया, “इसे बनाने में कलाकारों की मेहनत और कच्चे माल को ध्यान में रखकर ही कीमत तय की गई है, जो बिलकुल भी ज्यादा नहीं है। इसे तैयार करने में कारीगरों को 12 से 15 दिन लगते हैं साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में

इसी तरह की साइकिल की कीमत 50,000 रुपये से 1,50,000 रुपये के बीच है। उनकी तुलना में ‘बैम्बूका’ काफी सस्ती है और भविष्य में और कम कीमत पर भी उपलब्ध हो पाएगी आसिफ भविष्य में अपने स्टार्टअप को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदलने वाले हैं। उन्होंने कहा, “कई समूह हमें पैसे से मदद करने में रुचि दिखा रहे हैं। हम भविष्य में और बेहतर काम करना चाहते हैं।” फिलहाल आसिफ के पास बैम्बू साइकिल के दस ऑर्डर्स हैं, जिसपर वह काम कर रहे हैं।

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