हिन्दू_वीर_शिरोमणि_गौकुला_सिंह

वीर गौकुला एक साधारण क्षत्रीय जाट परिवार में पैदा हुए थे। उन्हें बचपन से ही शस्त्र अस्त्र की विद्या सिखाई गयी। वेदों व शास्त्रों का ज्ञान दिया गया था।उन्होंने दुष्ट औरँगेजेब के अत्याचारों के बारे में बचपन से ही सुना था इसलिए उन्होंने युवावस्था में ही क्रांतिकारियों की सेना तैयार करनी शुरू कर दी थी।

वीर गौकुला ने तिलपत में अपनी गढ़ी स्थापित की और मथुरा व ब्रिज के अन्य हिस्सों में भी अपने छोटे छोटे किले बना लिया।उसके बाद वे पूरे उत्तर भारत मे घूमे।हिन्दुओ को औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ जाग्रत किया।उनका भाषण इतना तेजस्वी था कि हिन्दू माओ ने अपने बेटो को गौकुला के अभियान के लिए समर्पित कर दिया था।उन्होंने हिन्दू युवकों के हाथों में हथियार दिए व 20000 युवकों की सेना तैयार की।वे औरंगजेब के खिलाफ सशस्त्र क्रांति करने वाले पहले वीर यौद्धा थे।उन्होंने हिन्दू किसानों को औरंगजेब के खिलाफ असहयोग नीति अपनाने को कहा व उनके एक आह्वाहन पर किसानों ने लगान बन्द कर दिया व बाकी हिन्दुओ ने जजिया कर देना बंद कर दिया।

उन्होंने मंदिरों महिलाओं किसानों की रक्षा की।धर्म व देश की भक्ति उनकी रग रग में बसी हुई थी।
उन्होंने इस्लामी राक्षस औरंगजेब के सबसे कट्टर अब्दुन्नबी खान का वध किया व हिन्दू युवाओ के मन से मुगलिया कर्मचारियों का खौफ निकाला।उन्होंने औरँगेजेब के सेनापतियों को हरा दिया।
इसके बाद हर जगह मुगलिया सरकार के कर्मचारियों को मार भगाना शुरू हुआ। औरंगजेब की सत्ता हिल गयी पूरे उत्तर भारत मे हिन्दू क्रांति की लहर दौड़ पड़ी।
औरंगजेब ने उसे सन्धि का प्रस्ताव भेजा व जागीर का लालच दिया।लेकिन गौकुला ने साफ मना कर दिया और उस पर तंज कसते हुए कहा कि जो धर्म के पथ से हट जाए व असली यौद्धा नहीं होता।और तुझे हिन्दुओ पर इतनी ही दया है तो अपनी बेटी ब्याह दे।
बिना किसी राजा महाराजा के सहयोग से एक छोटे से किसान के बेटे गौकुला ने यह सब कर दिखाया।
अंत मे जो औरंगजेब बड़े बड़े राजा महाराजाओं से लड़ने नहीं आता था उसे एक साधारण युवक से लड़ने आना पड़ा।
उसने पूरी ताकत गौकुला के आन्दोलन को दबाने में लगा दी।
औरंगजेब और गौकुला के बीच तिलपत में सीधा युद्ध शुरू हो गया।
गौकुला अंतिम युद्ध 4 दिनों तक लड़ता रहा।हजारो हिन्दू शहीद हुए।पर औरँगेजेब की शाही तोपो के आगे तलवारों से लड़ते रहे। आखिर तोपो के आगे बंदूक तलवार कब तक चलती अंत में औरँगेजेब का पलड़ा भारी होने लगा।हार देखकर माताओं ने अपनी बेटी के साइन में खंजर उतार दिया।पतियों ने पत्नियों के सीने में गोली उतार दी व रण में कूद पड़े थे।
इस तरह जौहर करके वीरांगनाओं ने अपना स्वाभिमान बचाया।
गौकुला व उनकी सेना ने हार देखकर मैदान नहीं त्यागा।हजारो युवा रण में शहीद हो गए।बाकियो को औरंगजेब ने बंदी बना लिया।
औरंगजेब से अंतिम तिलपत युद्ध 4 दिन तक लगातार चला।गौकुला व उनके साथियों को बंदी बनाकर आगरा दरबार मे ले जाया गया।
गौकुला व उनके चाचा उदयसिंह(सिंघा) पर इस्लाम स्वीकारने के लिए दबाव बनाया गया।लेकिन उन्होंने आंखों में आंखे डालकर कहा कि जो तू कर रहा है यही इस्लाम है तो इसे धर्म कहना पाप है और हिन्दू धर्म उनके शरीर के कतरे कतरे में बसा हुआ है।
अगर गौकुला इस्लाम स्वीकार लेते तो उस दिन उनके हजारो वीर सैनिक व उत्तर भारत के हजारो हिन्दू अपना धर्म त्याग देते। गौकुला यह जानते थे उन्होंने अपने प्राणों की तनिक भी चिंता न की और अपने धर्म के स्वाभिमान को नहीं झुकने दिया।

इसके बाद औरंगजेब ने 1 जनवरी 1670 को गौकुला व उनके चाचा के शरीर के टुकड़े टुकड़े करवा दिए।उनके साथियों व करीबियों का भी यही हाल हुआ। वहां देखने वाले हर इंसान के मुख से है राम की ध्वनि निकल रही थी।लेकिन शहीद होने वाले वीरों का सिर गर्व से तना हुआ था व उनके चित पर प्रसन्नता ही दिखाई दे रही थी।

उनके मासूम छोटे छोटे बच्चों की भी दुष्ट औरँगेजेब ने निर्मम तरीके से हत्या करवा दी थी। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया। उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है। फव्वारा में मुख्य रूप से दवा बाजार है। यहीं पर कोतवाली है। गोकुला जाट का बलिदान मुगल शासन के ताबूत में अंतिम कील के रूप में सिद्ध हुआ।
इस बलिदान के बाद हिंदूओ में साहस भर गया उन्होंने औरंगजेब के अत्याचारों के विरुद्ध क्रांति शुरू कर दी। उसके बाद अनेकों यौद्धाओं ने दुष्ट के खिलाफ समय समय और क्रांति की। गौकुला का बलिदान मूगला सत्ता के खात्मे में मील का पत्थर साबित हुआ।
कहां है तिलपत
तिलपत इस समय फरीदाबाद जिले (हरियाणा) का कस्बा है। तिलपति पहले मथुरा में था। औरंगजेब के समय तिलपत गढ़ी कहलाता था। तिलपत के जमींदार थे गोकुल सिंह (गोकुला जाट)। मथुरा से छह मील दूर राया विकास खंड के गांव सिहोरा में भी गोकुल सिंह और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था।
राजस्थान के कवि बलवीर सिंह ‘करुण ‘ने अपनी पुस्तक ‘समरवीर गोकुला’ में लिखा हैँ-
धीरे धीरे लगा जगाने स्वाभिमान का पानी,
कर से कर इन्कार बगावत कर देने की ठानी।
तुम तो एक जन्म लेकर बस एक बार मरते हो
और कयामत तक कब्रों में इन्तजार करते हो
लेकिन हम तो सदा अमर हैं आत्मा नहीं मरेगी
केवल अपने देह वसन ये बार बार बदलेगी

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