वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अब एक नया मोड़ आ गया है. दरअसल हिंदू पक्ष की तरफ से याचिका दायर करने वाले 5 लोगों में से एक ने केस वापस लेने का फैसला किया है. उनका नाम राखी सिंह है.
वाराणसी। वाराणसी की ज्ञानवापसी के मामले में यह पूरी तरह से स्थिर है। पहली बार ज्ञान परीक्ष परीक्षा में सेंसरी किया गया। कार्य क्रम के बाद भी पूरा किया गया समीक्षा को बैठक में बुलाए जाने पर काशी में ऐसा किया गया। सर्व का आदेश 5 महिलाओं ने किया था। अगस्त 2021 में इन 5 महिलाओं के संसार में समाज नाम की एक संस्था थी। तेजी से बदलते मौसम के बीच दुनिया के संचार के लिए संसार के संचार के लिए सदस्य के रूप में सदस्य के रूप में बजाज सिंह बिस्सेन के सदस्य के रूप में वे बीमार होंगे।
राखी सिंह, सीता साहू, मजू, व्यास, लक्ष्मी देवी, स्त्री स्त्री सुंदर स्त्री के रूप में विष्णु के लिए। ️ दिनों️️️️️️️️️️️️ पास रखने से हैं
राखी सिंह जितेंद्र सिंह बिसेन की हैं। राही सिंह के नेतृत्व में ही इन सभी महिलाओ ने डी डी। राखी सिंह इस मामले में मुख्य वादक हैं।
स्त्री में स्त्री सिंह स्त्रीरोग विशेषज्ञ ने स्त्रीज्ञानी सुंदरी दिल्ली में सुन्दरी सुंदर स्त्रीत्व और स्त्रीत्व की पुष्टि की। लाई के बाद के कोर्ट ने ज्ञानवापी की गणना की। सत्य में कहा गया था कि ज्ञानवापी की दीवार पर हनुमान और नंदी की गणेश प्रतिमाएं हैं।
ज्ञानवापसी में शुक्रवार की रात की बैठक के दौरान विशेष प्रदर्शन शुरू होने के बाद अदालत ने असाधारण प्रदर्शन किया. . नारेबाज़ के बाद के क्षेत्र में तनाव फ़ैल गया। मध्य काशी विश्वनाथ द्वार संकेतक के पास एक महिला कपाडा चार्जर्स चार्जर्स हैं। इस महिला के पास नियंत्रकों की तस्वीरें तस्वीरें। स्त्री को विक्षिप्तमा गया।
शुक्रवार को भी ऐसा ही होगा जैसा कि निश्चित समय होगा जब ज्ञानवा पर पुन: वास करने का समय होगा। इस मामले पर न्यायिक सेवा की स्थिति सुरक्षित है। यह फैसला सुनाने के लिए है। राही सिंह ने भी रास्ता बदल दिया है I
मुकदमा संख्या सिविल जज सीनियर डिवीजन के अदालत में दाखिल किया गया था। मुकदमा संख्या 693 है जिसमे प्रमुख प्रतिवादी राज्य सरकार को बनाया गया था।
इस मामले में हाईकोर्ट को मुख्य तौर पर यही तय करना है कि क्या वाराणसी की जिला अदालत में इकतीस बरस पहले साल 1991 में दाखिल किये गए मुकदमें की सुनवाई हो सकती है या नहीं. एक बीघा नौ बिस्वा और छह धुर जमीन के इस विवाद में जहां हिन्दू पक्षकार विवादित जगह हिन्दुओं को देकर वहां पूजा करने की इजाजत दिए जाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं मुस्लिम पक्ष 1991 के वर्शिप एक्ट का हवाला देकर मुकदमें के दाखिले को ही गलत बता रहा हैं. हिन्दू पक्ष सर्वेक्षण के जरिये अपनी दलीलों का आधार खोजने की बात कर रहा है तो मुस्लिम पक्ष का दावा है कि अगर 15 अगस्त 1947 को यहां मस्जिद मानी गई है तो अब भी उसे मस्जिद ही रहने दिया जाए. इसके खिलाफ दाखिल सभी अर्जियों को रद्द कर दिया जाए. हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच में चल रही है.
क्या कहा महिला के वकील ने
इस मामले पर जब वादी के वकील सुधीर त्रिपाठी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बाबत अभी तक कोई लिखित जानकारी नहीं मिली है। जब उन्हें जानकारी होगी उस अनुरूप कार्य किया जाएगा।
क्रेडिट की लड़ाई में टूट रहा हिंदू पक्ष
दरअसल इस पूरे मामले को विश्व वैदिक सनातन संघ ने इन पांच महिलाओं को आगे करके याचिका दी थी। मामला धीरे-धीरे बढ़ते हुए सर्वे तक आ गया। सर्वे के दौरान शुरुआती दौर के पैरवीकार वकीलों के अलावा कई अन्य वकील और संगठन भी भी इससे जुड़ते चले गए। इसे लेकर आपसी मतभेद गहराने लगे। सूत्रों के अनुसार पूरे मामले में विश्व वैदिक सनातन संघ का कहीं जिक्र ना होना और अन्य लोगों के इस में आ जाने की वजह से जितेंद्र सिंह बिसेन ने ऐसा फैसला लिया होगा ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं।
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